आज सुबह फिर मुझे समय मिल गया, कुछ धीमा हुआ और दौड़ पड़ा | साथ दौड़ते हुए मैने पूछा - "क्षण क्षण तू बढ़ता और ढलता है, अस्तित्व का पहिया तेरे काँधे पर चलता है | आखिर कौन है तेरा दोस्त?" समय ने गहरी साँस ली, फिर बोला - "मेरा और तेरा दोस्त है परिवर्तन जिसके दो पहलू हैं - बदलाव और विकास | बदलाव पर तेरा बाल नहीं, वह उसकी फ़ितरत है | दिन, महीना, साल, सदी निकल जाना कुदरत है | विकास की कहानी अलग है, वो मेरे साथ भी है और तेरे साथ भी | तू हर क्षण बदलेगा, लेकिन तेरा विकास तेरे हाथ है | तू चाहेगा तो विकास तेरा दोस्त है, लेकिन तू ललचा गया तो तेरा विकास ही तेरा सबसे बड़ा क्षत्रु भी है |" मैने कुछ देर सोचा, फिर पूछा - "चाहत और लालच में फ़र्क कैसे करूँ मैं? क्या जीवन को बेहतर करने की चाहत भी लालच है?" समय अट्टहास लगाते हुए बोला - "जीवन को बेहतर बना लेकिन दिशा का ध्यान रख | विकास मन से शुरू होकर बाहर की ओर चलता है तब वह तेरा दोस्त होता है | अपने अंदर से शुरू करते हुए जीवन को बेहतर बनाते जाना ही विकास की दोस्ती निभाना है | तब बदलाव तुझे तंग नहीं करेगा, तेरे साथ मुस्क