उस रात अजीब सी बात हुई, मेरी ख़ुद से मुलाक़ात हुई ।
वक़्त के आईने बहते रहे, मेरी ख़ामोशी सहते रहे ।
देखता रहा अक्स अपना, थकान भरी नज़रें थम गयीं ।
हिम्मत लगी नज़र उठाने में, ख़ुद से नज़र भी मिलाई ।
"तू तो सुबह सुबह भागता था, चैन से सो लेने पर जागता था ।
खेल खेलते खो जाता था, थक जाने पर सो जाता था ।
आज तू वापस आया है, पहले से भारी काया है ।
तजुर्बा आया है साथ तेरे, नतीजे कुछ साथ लाया है ।
मन फिर भी हल्का है, डर का बोझ बाक़ी नहीं ।
अरसे से नींद नाराज़ है, अँधेरे में ग़ुम कहीं ।
साथ है तेरा भरोसा, तू हारेगा नहीं और रुकेगा नहीं ।
उम्मीद रख सिर्फ ख़ुद से, लगातार तू उठेगा सही ।"
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